भारत और चीन की नवीकरणीय ऊर्जा क्रांति की तुलना जानें। दोनों देशों में निवेश, नीति, और उत्पादन क्षमता में अंतर, और भारत को चीन से क्या सीखना चाहिए।
परिचय
आज के समय में दुनिया के अधिकतर देश नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में बहुत तेजी से आगे बढ रहे हैं और लगातार नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में भारी निवेश कर रहे हैं । वैसे ही दुनिया के सबसे बड़े दो विकासशील देश, चीन और भारत, अपने स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। दोनों देशों ने नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में बड़ा निवेश और लंबी अवधि के लक्ष्य तय किए हैं, लेकिन उनका दृष्टिकोण और परिणाम में दिन व रात का अंतर दिखाई देता है । जहां चीन ने अपने नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र को गति देने के लिए विशाल निवेश और रणनीतिक नीतियाँ अपनाई हैं, वहीं भारत का विकास कुछ धीमा और सीमित रहा है।
इस ब्लॉग में हम चीन और भारत की नवीकरणीय ऊर्जा नीति और निवेशों की तुलना करेंगे और समझेंगे कि दोनों देशों का विकास किस दिशा में जा रहा है।
चीन की नवीकरणीय ऊर्जा क्रांति
चीन ने 2000 के दशक की शुरुआत में नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में कदम रखा था। यह देश आज सौर ऊर्जा, बैटरी निर्माण और इलेक्ट्रिक वाहनों के क्षेत्र में बहुत तेजी से आगे बढ रहा है और वैश्विक नेता बन चुका है। चीन के नवीकरणीय ऊर्जा निवेश की रफ्तार भी अभूतपूर्व रही है।
2024 में, कार्बन ब्रीफ के अनुसार, चीन ने नवीकरणीय ऊर्जा में $940 बिलियन का रिकॉर्ड निवेश किया जोकि 78 लाख करोड रुपये के लगभग बनता है, जबकि 2006 में यह संख्या केवल $10.7 बिलियन थी। इस विशाल निवेश के परिणामस्वरूप, चीन आज दुनिया के 80% सौर पैनलों का उत्पादन करता है और पवन ऊर्जा व इलेक्ट्रिक वाहनों के क्षेत्र में भी अग्रणी है। साथ ही, चीन में ऊर्जा भंडारण और हरी हाइड्रोजन जैसी नई प्रौद्योगिकियों में भी तेज़ी से विकास हो रहा है।

Q.नवीकरणीय ऊर्जा में भारत का कौन सा स्थान है?
Ans:-नवीकरणीय ऊर्जा में भारत का स्थान चौथा है ।
Q. 2030 तक भारत की कुल नवीकरणीय ऊर्जा का लक्ष्य क्या है?
Ans:-2030 तक भारत का नवीकरणीय ऊर्जा का लक्ष्य 500 गीगावाट गैर जीवाश्म ईंधन का है
Q.नवीकरणीय ऊर्जा में भारत का प्रथम राज्य कौन सा है?
Ans:-नवीकरणीय ऊर्जा में भारत का प्रथम राज्य राजस्थान है ।
Q.भारत की नंबर 1 ग्रीन एनर्जी कम्पनी कौन सी है ?
Ans:-भारत की नंबर 1 ग्रीन एनर्जी कम्पनी अदाणी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड है ।
भारत की नवीकरणीय ऊर्जा यात्रा: महत्वाकांक्षी लेकिन सीमित
भारत ने भी नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में अपनी रणनीति बनाई है, और 2030 तक 500 GW गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता हासिल करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। हालांकि, चीन के मुकाबले भारत का निवेश बहुत कम रहा है। 2024-25 में, CEEW के अनुसार, भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा में $3.4 बिलियन का निवेश किया, जो चीन के निवेश का बहुत छोटा हिस्सा है। इसका एक बड़ा कारण वित्तीय संसाधनों की कमी, नितियों को धरातल में लाने में आने वाली बाधाएं और घरेलू विनिर्माण का अपेक्षाकृत धीमा विकास है।
भारत के सामने कई चुनौतियाँ हैं:
- नियमों में अनिश्चितता
- सस्ती पूंजी की कमी
- घरेलू निर्माण क्षमता की कमी
- आयात पर निर्भरता
हालांकि भारत ने सौर पार्कों और अपतटीय पवन ऊर्जा जैसी परियोजनाओं पर ध्यान दिया है, लेकिन घरेलू निर्माण को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना, जो सौर पैनल उत्पादन को बढ़ावा देती है, एक अच्छा कदम है, लेकिन यह अभी भी प्रारंभिक चरण में है।

चीन और भारत की नवीकरणीय ऊर्जा में प्रमुख अंतर
तत्व | चीन | भारत |
2024 निवेश | $940 बिलियन | $3.4 बिलियन |
वैश्विक सौर पैनल हिस्सेदारी | 80%+ | <5% |
बैटरी निर्माण | वैश्विक नेता | सीमित क्षमता |
सरकारी समर्थन | मजबूत नीति, केंद्रीय योजना | मिश्रित नीति कार्यान्वयन |
निर्यात क्षमता | प्रमुख निर्यातक | घरेलू केंद्रित |
ऊर्जा भंडारण | बड़े पैमाने पर तैनाती | प्रारंभिक चरण |
भारत के लिए चीन की रणनीति से सबक
- दीर्घकालिक दृष्टिकोण और स्थिर नीति: चीन की सफलता स्थिर नीति-निर्माण और दीर्घकालिक निवेश के परिणामस्वरूप आई है। भारत को भी इस दिशा में निरंतरता चाहिए।
- घरेलू निर्माण को बढ़ावा: चीन ने अपनी घरेलू विनिर्माण क्षमता को मजबूत किया, जिससे न केवल घरेलू मांग पूरी हुई, बल्कि वैश्विक स्तर पर आपूर्ति में भी चीन की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई। भारत को भी अपनी सौर और बैटरी निर्माण क्षमता को बढ़ाना होगा।
- सरकारी और निजी क्षेत्र का सहयोग: चीन ने सरकारी कंपनियों के साथ निजी कंपनियों को भी इस क्षेत्र में अधिक से अधिक कार्य करने के लिए प्रोत्साहित किया।जिसका परिणाम आज सबके सामने है। भारत को भी इस तरह के सहयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- ग्रिड आधुनिकीकरण और ऊर्जा भंडारण: चीन ने ऊर्जा भंडारण और स्मार्ट ग्रिड जैसे क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निवेश किया। भारत को भी इन्हीं क्षेत्रों में तेज़ी से काम करना होगा व इस क्षेत्र में अपना निवेश बढाना होगा।
निष्कर्ष
चीन और भारत के नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र की तुलना न केवल निवेश और उत्पादन क्षमता में अंतर को दर्शाती है, बल्कि यह दोनों देशों की नीति और रणनीति में भी भिन्नताएँ दिखाती है। चीन का केंद्रीकृत, निवेश-प्रधान मॉडल तेज़ी से वैश्विक प्रभुत्व की ओर बढ़ रहा है, जबकि भारत का मॉडल अभी भी शुरुआत में है, जिसमें स्थिर नीतियों और वित्तीय सहायता की आवश्यकता है।
हालांकि भारत को चीन की सफलता से प्रेरणा मिलनी चाहिए, वह अपनी खुद की रणनीति विकसित कर सकता है, जो न केवल घरेलू विकास को बढ़ावा दे, बल्कि वैश्विक ऊर्जा संक्रमण में भी महत्वपूर्ण योगदान दे।