Oxford University के शोधकर्ताओं ने एक ऐसी अद्भुत सौर सेल बनाई है जो किसी भी वस्तु को ऊर्जा उत्पादक बना सकती है। जानिए यह सौर सेल कैसे Renewable Energy की दुनिया में क्रांति ला सकती है।

परिचयः-
यह बात अपने आप में काल्पनिक लगती है कि आपकी खिडकियां, फर्निचर या मोबाइल फोन सब सोलर पैनल का काम कर सकते हैं परन्तु यह बात अब सिर्फ कल्पना नहीं बल्कि एक बैज्ञानिक हकिकत बन चुकी है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक ऐसा चमत्कारी सोलर सेल विकसित किया है, जो किसी भी वस्तु को सोलर सैल में बदल सकता है। यह खोज न केवल ऊर्जा उत्पादन में क्रांति लायेगा, बल्कि हमारी जीवनशैली, भवनों की संरचना और बिजली उत्पादन व उपयोग की प्रणाली को पूरी तरह से बदल सकता है।
सौर ऊर्जा का नया युगः Oxford University की क्रांतिकारी खोज
Oxford University के वैज्ञानिकों ने ‘पेरोव्स्काइट फोटोवोल्टाइक सेल’ (Perovskite Photovoltaic Cell) नामक एक अदभूत तकनीक विकसित की है। जो अब तक विकसित हुए सभी सोलर सेल डिजाइनों से कई गुना अधिक सक्षम और लचीली है। यह सेल इतनी पतली है कि इसे कांच, कपडे, लकडी या किसी भी अन्य सतह पर आसानी से लगाया जा सकता है। इससे किसी भी सामान्य वस्तु को बिजली उत्पादन के लिए उपयोग किया जा सकता है।
Perovskite (पेरोव्स्काइट): भविष्य का चमत्कारी पदार्थ
यह क्रांतिकारी खोज एक कृत्रिम रुप से तैयार पदार्थ के उपर आधारित है जिसका नाम है ‘पेरोव्स्काइट’ । यह कृत्रिम पदार्थ अत्यंत प्रभावशाली ढंग से सूर्य के प्रकाश को सोखने की क्षमता रखता है। पेरोव्स्काइट पुराने सिलीकान आधारित सोलर पैनलों की तुलना में अत्यंत हल्का, लचीला व सस्ता है।
शोधकर्ताओं ने एक विशेष “लेयर स्टैकिंग प्रोसेस” (परत संरचना तकनीक) विकसित की है, जो व्यापक प्रकाश स्पेक्ट्रम को सोखने में सक्षम है। जापान की राष्ट्रीय उन्नत औद्योगिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (AIST) ने इसकी 27% ऊर्जा दक्षता को प्रमाणित किया है, जो आज के सबसे बेहतरीन सिलीकान पैनलों के बराबर है। ऐसे में यह शोध सोलर ऊर्जा के क्षेत्र में क्रांति ला सकता है।

आपकी खिडकी, दरवाजों से बिजली का उत्पादनः-
अगर हम कहें कि हमारे खिडकियां, दरवाजे सूर्य के प्रकाश से दिनभर बिजली तैयार करें और वह बिजली हमारे घर के सभी इलेक्ट्रोनिक वस्तुओं को चलाये तो ये अपने आप में काल्पनिक सा लगता है, परन्तु अब यह बात बिल्कुल हकीकत बन चुकी है। सिर्फ खिडकियां, दरवाजे ही नहीं बल्कि मोबाइल फोन, गाडी की बाडी, दिवारें इत्यादि सब इस नयी तकनीक से सौर ऊर्जा पैदा कर सकते हैं।
इस नई तकनीक से हर घर पूरी तरह से ऊर्जा के सम्बंध मे आत्मनिर्भर हो जायेगा। “नेट-जीरो एनर्जी होम” अब सपना नहीं, व्यवहारिक लक्ष्य बन सकता है।
सौर ऊर्जा की लागत में गिरावटः-
सौर ऊर्जा के शुरुआती समय में सौर पैनल्स की लागत इतनी ज्यादा होती थी कि यह आम लोगों की पहुंच से बाहर होते थे। परन्तु समय के साथ-साथ सोलर पैनल्स की कीमत में लगातार गिरावट आई है और सोलर पैनल्स आम लोगों की पहुंच मे धीरे-धीरे आने लगे हैं। अब इस नई तकनीक से सोलर पैनल्स और भी ज्यादा किफायती हो जायेंगे। जिससे नवीकरणीय ऊर्जा को बढावा मिलेगा। जिससे हमारे पर्यावरण व अन्य बहुत से आवश्यक क्षेत्रों को फायदा पहुंचेगा।
इससे न केवल घरों में प्रयोग होने वाली बिजली की लागत घटेगी, बल्कि औद्योगिक क्षेत्रों, ग्रामीण इलाकों और दूर-दराज के क्षेत्रों में भी ऊर्जा पहूंच को आसान व सस्ता बनाया जा सकता है।

उद्योग विकसीत करने की तैयारीः बडे पैमाने पर उत्पादन
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की वाणिज्यिक साझेदार संस्था ऑक्सफोर्ड पीवी (Oxford PV), पहले ही इस खोज को व्यावसायिक रुप देने में लग गई है। उनकी जर्मनी स्थित फैक्ट्री में इन परोव्स्काइट सोलर सेल्स का उत्पादन शुरु हो चुका है। ताकि यह आम आदमी तक आसानी से और शीघ्र पहुंच सके ।
हालांकि, अभी इसमें बहुत सी चुनौतियां भी बनी हुई हैः-
- नई तकनीक से बनी सामग्री की मजबूती और लंबी उम्रः-
इस नई तकनीक से बने सोलर सैल बेहद पलते व हल्के होते हैं। अब इसमें सबसे बडी चुनौती यह सामने आ रही है कि ये सेल बारिश, धूप, गर्मी और ठंड जैसे मौसम में भी लंबे समय तक बिना खराब हुए काम कर सकेंगे या नहीं। आसान शब्दों में कहें तो इन्हे इतना मजबूत बनाना होगा कि ये सालों तक बिजली बनाते रहें।
- उत्पादन की लागत को कम करनाः-
इस नई तकनीक से बने सोलर सैल अभी थोडे महंगे है। अगर इनकी कीमत और कम हो जाए, तो ये आम लोगों तक आसानी से पहुंच सकेंगे। इससे गांवों, स्कूलों, दुकानों व घरों में भी इनका इस्तेमाल आसानी से हो सकेगा।
- हर जगह लगाना आसान बनानाः-
नई तकनीक से बने सोलर सैल्स तभी सफल होंगे जब इसे सिर्फ प्रयोगशालाओं या शहरों तक सीमित न रखकर गांव, छोटे कस्बों व दूर-दराज के इलाकों में भी लगाया जाए। इसके लिए सरकार तथा कम्पनियों को एक साथ मिलकर कार्य करना चाहिए।
इसके बाबजूद शोधकर्ता शुआइफेंग हू और उनकी टीम का मानना है कि आने वाले वर्षों में यह तकनीक और भी बेहतर होगी तथा हमारी ऊर्जा उपयोग की आदतों को पूरी तरह से बदल देगी।

पर्यावरण संरक्षण और कार्बन उत्सर्जन में कमीः-
जैसे- जैसे इस नयी तकनीक से बने सोलर सेल्स बडे पैमाने में अपनाया जायेगा, वैस-वैसे जीवाश्म ईंधनों पर हमारी निर्भरता कम होगी, जिससे न केवल ऊर्जा संकट मे राहत मिलेगी, बल्कि कार्बन उत्सर्जन में भी भारी गिरावट आएगी। यह जलवायु परिवर्तन से लडाई में एक हथियार बन सकता है।
हरित ऊर्जा की दिशा में क्रांतिकारी कदमः-
इस नई तकनीक से बनाये जाने वाले सोलर सैल्स हरित ऊर्जा की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम साबित हो सकता है। इस खोज से यह तो स्पष्ट है कि सौर ऊर्जा सिर्फ छतों तक ही सीमित नहीं रहेगी, बल्कि यह हमारे घरों की खिडकियों, दरवाजों, उपकरणों और दिवारों का हिस्सा बन जायेगी। जिससे ऊर्जा उत्पादन करने के लिए प्रयोग किये जाने वाले जीवाश्म ईंधनों का प्रयोग धीरे-धीरे कम होता जायेगा और हम हरित ऊर्जा की तरफ अपने कदम तेजी से आगे बढायेंगे। जो हमारे पर्यावरण संरक्षण व बदलती जलवायु को ठीक करने में अहम भूमिका निभायेगा।

निष्कर्षः-
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की यह खोज इस बात को सही साबित करती है कि यदि विज्ञान का इस्तेमाल सही दिशा में किया जाये तो ये पूरी दुनिया बदल सकता है। परोव्स्काइट आधारित सोलर सेल्स न सिर्फ तकनीकी क्रांति है, बल्कि यह हरित व स्वच्छ भविष्य की कठोर नींव है।
यदि हमारी सरकारें, उद्योग और आम नागरिक इस तकनीक को अपनाने में एकजुट हो जाएं, तो वह दिन दूर नहीं जब हर घर, हर गली और हर वस्तु ऊर्जा का स्त्रोत बन जाएगी।
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