Flexible Perovskite Solar Cells ने ऊर्जा दक्षता, स्थिरता और लागत में क्रांति ला दी है- आईए जाने कैसे यह तकनीक सौर ऊर्जा का भविष्य लिख रही है।

परिचयः-
दुनिया भर में सौर ऊर्जा तकनीक, नवीकरणीय ऊर्जा के भविष्य का प्रतिनिधित्व कर रही है। लेकिन पुराने जमाने के सौर पैनलों की कुछ सीमाएं जैसे कि इनका आकार, कठोरता, लागत इत्यादि इनको हर जगह इस्तेमाल होने से रोकती रही हैं। ऐसे में सौर ऊर्जा क्रांति को चार पंख तब लगे जब कोरिया के वैज्ञानिकों ने लचीली पेसोव्स्काइट सौर सेल्स (Flexible Perovskite Solar Cells) का विकास किया।
इस तकनीक से सौर ऊर्जा सेल्स को 10,000 बार मोडे जाने पर भी ये 96% की दक्षता बनाए रखती है और अत्यधिक ऊर्जा प्रदान करती है। इस शोध से अब सौर ऊर्जा सेल्स को घरों, वाहनों पर तथा अन्य उपकरणों पर आसानी से इस्तेमाल किया जा सकेगा । जिससे सौर ऊर्जा उत्पादन में तेजी आएगी।
FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
1. पेरोव्स्काइट सौर सेल्स क्या होती हैं?

उतरः-पेरोव्स्काइट सौर सेल्स एक उन्नत सौर तकनीक है जो सूर्य के प्रकाश को आसानी से सोखती है और पुराने सिलिकॉन पैनलों से अधिक लचीली व सस्ती है।
2. क्या ये सौर सेल्स भारत में इस्तेमाल के लिए उपयुक्त हैं?

उतरः-हां, पेरोव्स्काइट सोलर सैल्स भारत की जलवायु और भारत सरकार की सौर योजनाओं को देखते हुए ग्रामीण व शहरी दोनों इलाकों में काफी उपयोगी हो सकती है।
3.क्या ये सौर सेल्स महंगी हैं?

उतरः-नई Defect Passivation Strategy से इन सोलर सैल्स का उत्पादन सस्ते वातावरण में किया जा सकता है, जिससे इनकी लागत में भारी कमी आ जाती है।
4. इन सौर सेल्स का उपयोग कहाँ किया जा सकता है?

उतरः-इन्हें wearable electronics, सौर कपड़े, गाड़ियों की छत, पोर्टेबल चार्जर जैसे कई क्षेत्रों में उपयोग किया जा सकता है।
क्या हैं पेरोव्स्काइट सोलर सैल्स (Perovskite Solar Cells)?
पेरोव्स्काइट सोलर सैल्स एक ऐसी तकनीक है जो पतली फिल्म की तरह दिखती है। यह पुराने सिलिकॉन सोलर पैनलों की तुलना में हल्की, सस्ती तथा लचीली होती है। इसमें सुर्य के प्रकाश को सोखने व विद्युत ऊर्जा में बदलने की क्षमता उच्च दर्जे की होती है।
शुरुआती समय में इस तकनीक की सबसे बडी समस्या यह रही कि यह नमी के संपर्क में आकर बहुत जल्दी खराब हो जाती थी। लेकिन लम्बे समय के कठिन परिश्रम व शोध के बाद कोरिया इंस्टीट्यूट ऑफ मटेरियल साइंस (Korea Institute of Materials Science) की टीम ने इस कमजोरी को दूर करके एक टिकाऊ, लचीली सौर तकनीक का विकास किया है जो आज हम सबके सामने है।

Defect Passivation Strategy (डिफेक्ट पैशिवेशन तकनीक)-
इस तकनीक को ज्यादा कारगर बनाने के लिए कोरिया इंस्टीटयूट ऑफ मटेरियल साइंस ने डिफेक्ट पैशिवेशन तकनीक को अपनाया है। इस तकनीक के तहत पेरोव्स्काइट की मुख्य परत को दो 2D सुरक्षात्मक परतों के बीच रखा जाता है। जिससे इन सोलर सैल्स को सामान्य (50% आद्रता) में भी स्थिरता मिलती है और विशेष उपकरणों की आवश्यकता नहीं होती है। जिसके कारण ये सैल्स विपरित वातावरणीय परिस्थितियों में भी खराब नहीं होते।
इस तकनीक के विकसीत होने से सबसे बडा फायदा यह हुआ है कि अब इन सोलर सैल्स को महंगे नियंत्रित वातावरण के बिना भी तैयार किया जा सकता है। जिससे कि इनकी उत्पादन के खर्चे में भारी कमी आएगी और इन सौर पैनलों को आम जनता के लिए आसानी से उपलब्ध कराया जा सकेगा।

यांत्रिक सहनशीलता और लचीलेपन से नया आयामः-
कोरिया इंस्टीटयूट आफ मटेरियल साइंस के द्वारा विकसीत यह लचीली सौर सैल्स न केवल ज्यादा स्थिर हैं, बल्कि इनकी यांत्रिक सहनशीलता भी चौंकाने वाली है। इनके परिक्षणों में सामने आया है कि-
- इन सोलर सैल्स को 10,000 बार मोडे जाने के बाद भी इनकी दक्षता 96% बनी रहती है।
- Shear-sliding Test में भी इनकी 87% कार्यक्षमता बनी रहती है।
इन सभी परिक्षणों के नतीजों से साफ पता चलता है कि इन सौर सैल्स को सौर कपडों, वाहनों पर लगे सोलर रुफ, मोबाइल चार्जिंग पैनल्स व wearable electronics पर आसानी से लगाया जा सकता है।

व्यापारिक उपयोग की दिशा में एक महत्वपुर्ण कदमः-
इस तकनीक की सफलता व लोकप्रियता का मुख्य कारण इसकी scalability(स्केलेबिलिटी) मतलब बडे पैमाने पर उत्पादन की योग्यता है। कोरिया इस्टीट्यूट आफ मेटिरियल सांइस की टीम ने इसे सतत, लार्ज एरिया मैन्युफैक्चरिंग प्रक्रिया में भी लागू किया है, जिससे अब यह तकनीक उद्यौगिक स्तर पर तैयार की जा सकती है। अब कंपनियां इसे सोलर जैक्टस, रोलेबल सोलर पैनलस व स्मार्ट सिटी इन्फ्रास्ट्रचर में भी इस्तेमाल कर सकती हैं। जो आने वाले समय में बहुत ही लाभकारी कदम साबित होगा।
वैश्विक संदर्भ व विकासः-
आज के समय में सम्पुर्ण विश्व सौर ऊर्जा की नवीनता पर तेजी से कार्य कर रहा है। इसी दिशा में कार्य करते हुए हाल ही में चीन की एक कम्पनी ने पानी के उपर तैरने वाला floating solar module विकसित किया है जो समुद्र के पानी और मौसम की प्रतिकूलताओं को सहन कर सकता है।
इन सब कार्यों व अविष्कारों को देख कर लगता है कि अलग-अलग देश अब सौर तकनीक को हर मौसम, हर सतह और हर आवश्यकतानुसार अनुकूल बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं।

भारत में अपार संभावनाएः-
भारत एक विशाल देश है। भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन की अपार संभावनाऐं हैं। भारत में साल भर भरपूर धूप मिलती है, यहां पर यह लचीली सौर तकनीक एक क्रांतिकारी भूमिका निभा सकती है। ग्रामीण क्षेत्रों के अधिकांश लोग आर्थिक रुप कमजोर होते हैं व ग्रामीण क्षेत्रों में जगह का भी आभाव होता है जिस कारण बडे-बडे सोलर पैनल लगाना कारगर साबित नहीं होता है। जिससे बहुत से लोग इन सोलर पैनलों को लगवाने में रुची नहीं दिखाते हैं। ऐसे में ये foldable solar panels महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं जो लागत में भी कम है और आसानी से घरों में लगाये जा सकते हैं। इनसे ग्रामीण लोगों की बिजली की जरूरतें सस्ते में पूरी की जा सकती हैं।
इसके अतिरिक्त भारत में कई योजनाएं चल रही हैं जो सौर ऊर्जा को प्रोत्साहन देती है जैसे कि प्रधानमंत्री सूर्य घर योजना, सौर रथ योजना और हरित ऊर्जा मिशन । इन सभी योजनाओं में इस तकनीक का समावेश बिजली की सुलभता और आत्मनिर्भरता को नई ऊंचाई दे सकता है।

निष्कर्षः
इस नई तकनीक के विकास से अब यह कहना गलत नहीं होगा कि लचीली पेरोव्स्काइट सौर सेल्स का विकास सौर ऊर्जा के भविष्य को एक नई दिशा पर ले जा रहा है। इस तकनीक की कम लागत वाली निर्माण क्षमता, लचीलापन और ऊर्जा दक्षता इसे आने वाले समय में सौर ऊर्जा उत्पादन के लिए बिल्कुल उपयुक्त बनाती है। अंत में हम कह सकते हैं कि पेरोव्स्काइट सोलर तकनीक ने हरित ऊर्जा की ओर बढने वाले हमारे कदमों को और तेज कर दिया है।
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